- क्या आप बिना बिजली के इस आधुनिक दुनिया की कल्पना कर सकते हैं?
- बिजली की साइंस या इलेक्ट्रिक टेक्नोलॉजी पर रिसर्च का काम कब शुरू हुआ? और क्या ये अचानक शुरू हुआ?
- मुस्लिम साइंसदानों ने सुनहरे दौर में इलेक्ट्रिक टेक्नोलॉजी के मैदान में क्या काम किया?
- आइए तीन चीज़ों को बहुत ही संक्षेप में समझें – बिजली, मैग्नेटिज़्म, और सुनहरे दौर में किया गया काम।
बिजली क्या है?
बिजली एक ऊर्जा की एक रूप है जो चार्ज किए गए ज़र्रों, आम तौर पर इलेक्ट्रॉन्स, की हरकत से पैदा होती है। यह कुदरत का एक बुनियादी तोहफ़ा है जो हमारे घरों, फैक्ट्रियों, और ट्रांसपोर्ट के सिस्टम को ताकत देता है। बिजली अलग-अलग तरीकों से पैदा की जा सकती है, जैसे ईंधन जलाने, नवीकरणीय (ताज़ा होने वाले) ऊर्जा स्रोतों का इस्तेमाल, या परमाणु शक्ति के ज़रिए।
चुम्बकत्व (मैग्नेटिज़्म) क्या है?
चुम्बकत्व कुदरत की एक बुनियादी ताकत है जो कुछ किस्म के एलिमेंट्स को एक-दूसरे की तरफ खींचने या धकेलने का कारण बनती है। यह बिजली के चार्ज की हरकत से पैदा होती है। चुम्बक के दो ध्रुव होते हैं: एक उत्तरी ध्रुव और एक दक्षिणी ध्रुव। एक जैसे ध्रुव एक-दूसरे को धकेलते हैं, जबकि विपरीत ध्रुव एक-दूसरे को खींचते हैं। चुम्बक बहुत सी टेक्नोलॉजीज के लिए अहम है, जैसे इलेक्ट्रिक मोटर्स, जनरेटर और डेटा स्टोरेज के उपकरण।
चुम्बकत्व बिजली की पैदावार और ट्रांसमिशन में एक अहम किरदार अदा करता है। बिजली और चुम्बक के बीच का रिश्ता पहली बार 19वीं सदी की शुरुआत में साइंसदानों जैसे आंद्रे-मारी एम्पेयर (André-Marie Ampère) और जेम्स क्लर्क मैक्सवेल (James Clerk Maxwell) की कोशिशों से सामने आया। उनकी तहक़ीक़ ने यह साबित किया कि बिजली के करंट से चुम्बकीय फील्ड पैदा होते हैं, जो बिजली के करंट को पैदा करने की काबिलियत रखते हैं — यह उसूल इलेक्ट्रोमैग्नेटिक इंडक्शन (electromagnetic induction) के नाम से जाना जाता है।
चुम्बक और बिजली के बीच का रिश्ता:
बिजली और चुम्बक के बीच के रिश्ते की खोज इलेक्ट्रिक टेक्नोलॉजी की तरक्की के लिए बेहद अहम थी। इलेक्ट्रोमैग्नेटिक इंडक्शन, एक ऐसा उसूल (सिद्धांत) है कि बदलती हुई चुम्बकीय फील्ड बिजली के करंट को पैदा कर सकती है, यह एक अहम तरक्की थी जिसने जनरेटर और मोटर की ईजाद (आविष्कार) का रास्ता आसान किया।
सुनहरे दौर की तहक़ीक़ात (अनुसंधान):
इस्लामी सुनहरा दौर (शुरुआत: 622 ईस्वी, अंत: 1258 ईस्वी), साइंटिफिक तरक्की का एक अहम वक्त था, जिसमें कुदरती घटनाओं, जिनमें चुम्बकियता का अध्ययन शामिल है, में दिलचस्पी ली गई। अल-किंदी और अल-राज़ी जैसे साइंसदान, जो अलग-अलग क्षेत्रों में अपने काम के लिए मशहूर हैं, उन्होंने चुम्बक के गुणों और दूसरे अणुओं के साथ उनके इंटरैक्शन में गहरी दिलचस्पी ली। उनकी तहक़ीक़ात ने बाद के यूरोपीय साइंसदानों के लिए रास्ता आसान किया, जिन्होंने चुम्बकियता और बिजली के बीच का रिश्ता खोजा।
अल–किंदी, (अबू यूसुफ़ याक़ूब इब्न इस्हाक अल–किंदी (185 हिजरी/801 ईस्वी से 259 हिजरी/873 ईस्वी) लातीनी रूप Alkindus), आम तौर पर “अरबों के फिलॉस्फर” के नाम से जाने जाते हैं, एक महान शख्सियत थे जिनकी दिलचस्पियों का दायरा बहुत विस्तृत था। चुम्बकियता पर उनका काम कुदरती घटनाओं की उनकी गहरी खोज का हिस्सा था। अल-किंदी ने चुम्बक पर प्रयोग किए, इसकी लोहे और दूसरी धातुओं को खींचने की क्षमता का जायज़ा लिया। उन्होंने चुम्बकीय कशिश के रुझान को बयान किया और इसकी बुनियादी वजहों पर ग़ौर किया। उनकी तहरीरों ने चुम्बक और उसके इंटरेक्शन के गुणों को समझने के लिए एक शुरुआती फ्रेमवर्क प्रदान किया।
अल–राज़ी, हकीम अबू बक्र मुहम्मद बिन ज़करिया अल–राज़ी (पैदाइश: 854 ईस्वी – वफ़ात: 925 ईस्वी) (अंग्रेज़ी: Rasis / Rhazes) एक मशहूर चिकित्सक और रसायनशास्त्री थे, जिन्होंने चुम्बकियता के अध्ययन में भी अहम किरदार अदा किया। हालाँकि उन्हें ज़्यादातर उनकी चिकित्सा और रासायनिक तहक़ीक़ात के लिए जाना जाता है, मगर अल-राज़ी की तहक़ीक़ात कुदरती फिलॉसफ़ी के मैदान तक फैली हुई थीं। उन्होंने अणुओं की ख़ासियतों, जिनमें चुम्बकियता भी शामिल है, पर तजुर्बे किए, जैसा कि उनकी किताब “किताब-उल-मंसूरी” में दस्तावेज़ी तौर पर मौजूद है। उन्होंने चुम्बकीय अणुओं के इस्तेमाल और उनके दरमियान इंटरैक्शन को बयान किया, जो चुम्बक के बारे में शुरुआती समझ को बयान करता है। उनके प्रयोगात्मक तरीकों ने चुम्बकियता और इसके इस्तेमाल पर होने वाली बाद की तहक़ीक़ात के लिए एक अहम बुनियाद प्रदान की।
साइंसदान जैसे अल–जज़री (बदीउज़–ज़मां अबू अल–इज़ बिन इस्माईल बिन अल–रज़्ज़ाज अल–जज़री – पैदाइश: 1136 ईस्वी– वफ़ात: 1206 ईस्वी) ने अपनी किताब “The Book of Knowledge of Ingenious Mechanical Devices” में पानी और हवा से चलने वाली खुदकार मशीनें मुतआरिफ करवाईं, जो ऊर्जा के तबादले के शुरुआती विचारों को ज़ाहिर करती हैं।
एक महत्वपूर्ण काम साइंसदान इब्न-हेथम (अबू अली अल-हसन बिन अल-हेथम – पैदाइश: 965 ईस्वी, वफ़ात: 1039 ईस्वी) की जानिब से अमल में आई। जिन्हें “अबू-उल-बसरियात” (फादर ऑफ़ ऑप्टिक्स) के नाम से जाना जाता है। उनके रौशनी और आइनों पर किए गए तजुर्बे ऑप्टिक्स के उसूलों के स्थापना में मददगार साबित हुए, जो बाद में बिजली को समझने में भी अहम बन गए। उन्होंने साइन्टिफिक विधि को भी तरक्की दी, जिसमें अवलोकन और प्रयोग पर ज़ोर दिया गया, और यही आधुनिक साइंटिफिक अनुसंधान की बुनियाद है।
तजुर्बाती तरीक़ा:
इस्लामी सुनहरी दौर के साइंसदानों की मैग्नेटिज़्म में दिलचस्पी सिर्फ़ नज़रियाती तहकीकात तक महदूद नहीं थी। उन्होंने मैग्नेटिज़्म के अमली इस्तेमालात का भी जायज़ा लिया। मसलन, उस दौर के बहुत से साइंसदान मैग्नेटिज़्म को जहाज़रानी के मक़ासिद या तिब्बी इलाज के लिए इस्तेमाल करने में दिलचस्पी रखते थे। हालाँकि इन अमली इस्तेमालात की हद पूरी तरह मालूम नहीं है, लेकिन यह इस्लामी सुनहरी दौर के साइंसदानों की इस ख्वाहिश को ज़ाहिर करता है कि वह अपने साइंसी इल्म को हक़ीक़ी दुनिया के मसाइल से जोड़ें।
इस्लामी सुनहरी दौर (आग़ाज़: 622 इसवी, इख़्तिताम: 1258 इसवी) के दौरान मुस्लिम साइंसदानों ने ऑप्टिक्स, मैग्नेटिज़्म, और क़ुदरती फ़लसफ़े में बुनियादी रिसर्च के ज़रिये बिजली की इजाद की बुनियाद रखी। साइंसदान जैसे अलकिंदी और अलराज़ी ने रोशनी और अनासिर पर तजुर्बात किए, तजुर्बाती मुशाहिदे पर ज़ोर दिया, और इस अमल ने बिजली की बाद की समझ पर असर डाला और इस मैदान में मुस्तकबिल की खोजों के लिए राह हमवार की।
इन साइंसदानों के तजुर्बात और कोशिशों ने मैग्नेटिज़्म की समझ को और ज़्यादा तरक़्क़ी देने में मदद की, जो आखिर में बिजली की टेक्नोलॉजी में बाद की साइंटिफिक तरक़्क़ी पर असरअंदाज़ हुई। उनका काम तजुर्बाती मुशाहिदे और तजुर्बात की एहमीयत की मिसाल पेश करता है, जो साइंटिफिक तरीक़े की बुनियाद थे, जिससे आख़िरकार बिजली की दरयाफ़्त और उसके इस्तेमाल की राह हमवार हुई।
सुहैब नदवी
लाहूत हिंदी डाइजेस्ट
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और अधिक पढ़ें
- https://link.springer.com/chapter/10.1007/978-3-319-31903-2_1%C2%A0
- https://en.wikipedia.org/wiki/Al-Kindi
- https://plato.stanford.edu/entries/al-kindi/
- https://en.wikipedia.org/wiki/Abu_Bakr_al-Razi
- https://www.britannica.com/biography/al-Razi