ग़म-ए ज़िंदगी से फ़रार क्या, यह सुकून क्यों यह क़रार क्या
ग़म-ए ज़िंदगी भी है ज़िंदगी, जो नहीं खुशी तो नहीं सही
ज़िंदगी एक अजीब सफर है, जिसमें ख़ुशी और ग़म, दोनों साथ-साथ चलते हैं। जहाँ ख़ुशी के पल हमें सुकून और ख़ुशहाली देते हैं, वहीं ग़म के लम्हे हमें चिंता और परेशानी में डाल देते हैं। अक्सर ऐसा होता है कि हम ग़म के बोझ से परेशान होकर भागने की कोशिश करते हैं, लेकिन सवाल ये है कि क्या वाकई ये भागना हमारी रूह की प्यास को बुझा सकता है? क्या बिना ग़म और परेशानी के हमारी ज़िंदगी ऊँचे मकाम हासिल कर सकती है? क्या ग़म के बिना हमारी शख़्सियत मज़बूत हो सकती है?
ग़म एक फ़ितरी एहसास है, जो इंसानी ज़िंदगी का हिस्सा है। इससे भागना संभव नहीं है, क्योंकि ज़िंदगी के उतार-चढ़ाव, उसकी जटिलता और रंगीनियाँ इसी एहसास से जुड़ी हुई हैं। ग़म हमें सिखाता है कि ख़ुशी की क़ीमत क्या होती है। यह हमें ज़िंदगी के फानी होने का एहसास दिलाता है और बताता है कि दुनिया की हर चीज़ अस्थायी है।
कुछ लोग ज़िंदगी के ग़मों से भागने के लिए अलग-अलग तरीक़ों का इस्तेमाल करते हैं, जैसे कि नशा, अकेलापन, या बेकार की गतिविधियाँ। ये चीज़ें उन्हें बाहर से सुकून देती हैं, लेकिन ये सुकून अस्थायी और सतही होता है। ये भागना उन्हें ज़िंदगी की हकीकतों से दूर कर देता है और एक काल्पनिक दुनिया में क़ैद कर देता है, जहाँ वे असली समस्याओं का सामना नहीं कर पाते।
असली सुकून और क़रार वह है जो ग़म का सामना करने, उसे स्वीकार करने, और उससे सीखने के ज़रिए मिलता है। जब हम ग़म को ज़िंदगी का हिस्सा मानकर सहन करते हैं, तो यह हमें मज़बूत बनाता है और हमारी शख़्सियत को निखारता है। ग़म के लम्हों में हमारी रूह को गहराई मिलती है और हम अपने अंदर के एहसासों को बेहतर तरीके से समझने लगते हैं।
ग़मे ज़िंदगी से मत भागें, इसे गले लगाएँ, क्योंकि यही वह एहसास है जो हमें अपने आप को समझने का मौक़ा देता है और हमें इंसानियत के करीब लाता है। ज़िंदगी के कड़े तजुर्बे ही हमें खुद को जानने की राह पर ले जाते हैं और हमें अपनी असली ताक़त का एहसास कराते हैं। ग़म को स्वीकार करना, उससे सीखना और उसे अपनी ज़िंदगी का हिस्सा बना लेना, हमें वो समझ और दृष्टि देता है जो सिर्फ ख़ुशी के पल में नहीं मिल सकती।
यह कहना सही होगा कि ग़म से भागने का रास्ता सुकून की ओर नहीं ले जाता। सुकून और करार ग़म को स्वीकार करने, उससे सीखने, और ज़िंदगी की चुनौतियों का सामना करने में है। ग़म से भागना एक अस्थायी हल हो सकता है, लेकिन ज़िंदगी की असली ख़ुशी और सुकून यही है कि हम अपने ग़मों का सामना करें, डट जाएँ और आखिर में और बेहतर बनकर बाहर आएँ।
सुहैब नदवी
लाहूत हिंदी डाइजेस्ट
सोशल मीडिया पर हमसे जुड़ें:
https://www.facebook.com/LaahootHindi
https://x.com/LaaHoot
https://www.youtube.com/@LaahootTV