इन्सान ख़ाली हाथ इस दुनिया में आता है और अपने खाली वजूद के साथ अपनी ज़िंदगी के सफ़र का आग़ाज़ करता है। लेकिन फिर धीरे-धीरे उसे पता चलता है कि कुछ मख़सूस जगहें हैं जहाँ उस की सलाहियतें प्रवान चढ़ सकती हैं और क़िस्मत जगमगा सकती है, जहाँ वह अपने जौहर निखार सकता है और बाहरी दुनिया पर अपना असर डाल सकता है।
आईए, हम इन चार अहम जगहों का जायज़ा लेते हैं जो ताक़त के चश्मों की हैसियत रखते हैं, इबादत-गाह, कारोबार, लाइब्रेरी और जिम।
इबादत-गाह
इबादत-गाह इस फ़हरिस्त में सब से पहले है, ये रूह का मस्कन है जहाँ इन्सान अपने ख़ालिक़ से राबिता करता है और इस से क़ुव्वत हासिल करता है, ज़िंदगी के लिए रहनुमाई हासिल करता है। यहाँ दुआएँ आसमान छूती हैं और अपना असर दिखाती हैं। दुनिया की मशक़्क़तों से नजात मिलती है और वजूद के आला तरीन मक़सद से दुबारा राबिता क़ायम होता है। इस मुक़ाम पर इन्सान को मुश्किल से मुश्किल वक़्त में भी सुकून और इत्मिनान हासिल होता है और इस का अंदरून मज़बूत होता है जो उसे चैलेंजों का मुक़ाबला करने की ताक़त बख़्शता है।
कारोबार
कारोबार वह मैदान-ए-अमल है जहाँ हमारी सलाहियतों का असल इम्तिहान होता है और हमारे हुनर सँवरते हैं। हम यहाँ अपनी मेहनत और वक़्त लगा कर अपना पेशावराना सफ़र तै करते हैं और दुनियावी कामयाबी हासिल करते हैं। अपने मुआशरे पर अच्छा असर डालते हैं और माली ख़ुदमुख़तारी हासिल करते हैं। माली ख़ुदमुख़तारी बाहरी ताक़त की एक अज़ीम शक्ल है। दुनियावी ज़िन्दगी में कामयाबी हासिल करने के लिए बेहतर और मुनासिब कारोबार करना और फिर अपने कारोबार के लिए अपने आप को खपा देना इस वक़्त की अहम ज़रूरतों में से एक है।
लाइब्रेरी
लाइब्रेरी हमें ला-महदूद इलम की दुनिया में ले जाती है। यहाँ हम बड़े-बड़े लोगों और तारीख़ साज़ शख़्सियात से इल्म-ओ-हिकमत सीखते हैं, उनके बारे में जानते हैं और फ़िक्र व ख़्याल की नयी उचाईयाँ दरयाफ़्त करते हैं। पढ़ना हमारी समझ को बढ़ाता है और हमारे सोचने के दायरे को वसीअ करता है, ये हमें इल्म फ़राहम करता है जो जहालत के ख़िलाफ़ एक मज़बूत हथियार है। ये हमें मालूमात की एनालिसिस करने और तन्क़ीदी लिहाज़ से सोचने और अक़्ल पर मबनी नुक़्ता-ए-नज़र तश्कील देने की सलाहियत देता है।
जिम
और जिम में हम अपने जिस्म को मज़बूत बनाते हैं और उसे निखारते हैं। वरज़िश के ज़रीये हम अपनी सेहत को बेहतर बनाते हैं और बर्दाश्त और इस्तिक़ामत की सलाहियत पैदा करते हैं। रेगुलर वरज़िश करना ना सिर्फ़ हमारे जिस्मों को मज़बूत करता है बल्कि ख़ुशी के हारमोन्ज़ भी पैदा करता है जो हमारे मिज़ाज को बेहतर बनाते हैं और कॉन्फिडेंस को बढ़ाते हैं। वरज़िश की मशक़्क़त हमें साबित क़दमी सिखाती है और हिम्मत ना हारने का सबक़ देती है, ये वह हुनर हैं जो ज़िंदगी के तमाम हिस्सों में चैलेंजों पर क़ाबू पाने में हमारी मदद करते हैं।
ये बात बिलकुल ज़ाहिर है कि ये चारों जगहें एक दूसरे से जुदा नहीं हैं बल्कि मिलकर इन्सानी ताक़त की तश्कील के लिए एक मुकम्मल निज़ाम बनाते हैं, चाहे वह अंदरूनी हो या बाहरी। इबादत-गाह से ताक़त पाने वाला ईमान हमारे अंदरून को मज़बूत करता है, लाइब्रेरी से हासिल होने वाला इलम हमारी फ़हम को बढ़ाता है और वरज़िश से हासिल होने वाली सेहत हमें अपने फ़राइज़ अच्छे तरीक़े से सरअंजाम देने के काबिल बनाती है, और बग़ैर अच्छे कारोबार के तो दुनियावी ज़िंदगी एक अज़ाब और सज़ा की सूरत इख़तियार कर सकती है।
लाहूत हिंदी डाइजेस्ट