कहते हैं जितना आप अपने उस्ताद या मुहसिन का अदब करेंगे इतना ही आपका नसीब चमकेगा। साबिक़ राष्ट्रपति ए पी जे अब्दुल कलाम कहते थे कि जिस उस्ताज़ का सारी क्लास मज़ाक़ उड़ाया करती थी मैं उनसे सबसे ज़्यादा सीखता और इल्म हासिल करता था।
“जिनके किरदार से आती हो सदाक़त की महक
उनकी तदरीस से पत्थर भी पिघल सकते हैं”
शब्दकोष के अनुसार अदब का अर्थ है सभ्यता, तमीज़ और व्यवहार। लेकिन, इस का मफ़हूम बहुत गहरा है। अदब ना सिर्फ ज़ाहिरी तमीज़ और व्यवहार से ताल्लुक़ रखता है बल्कि इन्सान के दिल के भीतर भी मौजूद होता है। अदब एक ऐसी ख़ूबी है जो इन्सान को दूसरों के साथ इज़्ज़त-ओ- एहतेराम से पेश आने के लिए मजबूर करती है।
अंग्रेज़ी में कहते हैं, THE KEY IS RESPECT, यानी कामयाबी की चाभी तमीज़ और व्यवहार में है।
“लिहाज़ करते अदब एहतेराम करते हुए
गुज़र रहा हूँ मुहब्बत को आम करते हुए”
क़ुरआन और हदीस में भी अदब की एहमियत को बार-बार उजागर किया गया है। क़ुरआन में अल्लाह ताला फ़रमाते हैं, “ए ईमान वालो ऐसी क़ौम ना बनो जो दूसरों का मज़ाक़ उड़ाती है (सूरह अल-हुजुरात ۱۱)। इस आयत में अल्लाह ताला हमें अच्छी सभ्यता और व्यवहार की तलक़ीन करते हैं ताकि हम समाजी बुराईयों से बच सकें। नबी करीम ﷺ ने भी अदब की तालीम देते हुए फ़रमाया, “तुम में सबसे बेहतर वो है जो अख़लाक़ में सबसे बेहतर हो (सही बुख़ारी और सही मुस्लिम)।
बा-अदब बा नसीब, बे-अदब बे-नसीब, एक ऐसा सबक़ है जो हमें ज़िंदगी के हर पहलू में अदब की अहमियत का एहसास दिलाता है। अदब ना सिर्फ हमारी शख़्सियत को निखारता है बल्कि हमें दुनिया और आख़िरत में कामयाबी की राह भी दिखाता है।
मुश्ताक़ अहमद नूरी का शेर है:
“रिवायतों का बहुत एहतेराम करते हैं
कि हम बुज़ुर्गों को झुक कर सलाम करते हैं”
लाहूत हिंदी डाइजेस्ट